सोमवार, 14 सितंबर 2009

भारत माता की बिंदी हु. मै हिंदी हू

हॉ मै हिंदी हू ,हिंदी हू ,हिंदी हू ,

भारत माता की बिंदी हु.
मै हिंदी हू.
यह न पूछो के 
हाल मेरा कैसा है.
अपनों के बिच 
पराये जैसा है.
मिया मिट्टू भला 
कोई अपने मुंह बनता है.
अपनी दही कों 
कोई खट्टी नहीं कहता है.
अपना सा मुंह लेकर 
रह रही  हू .
बीती अपनी
खुद कहा रही हू.
मुझे मलाल  बड़ा भारी है 
मेरा  शोषण  बददस्तुर जारी है 
फटी हुई चिंदी हू .

हॉ मै हिंदी हू ,हिंदी हू ,हिंदी हू ,
प्रेम लता एम. सेमालानी 

15 टिप्‍पणियां:

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

Amit K. Sagar
to me

show details 9:22 PM (1 hour ago)


आपके ब्लॉग पर तकनीकी कारण से कमेन्ट न छपने के कारण मैं यहाँ मेल द्वारा अपनी बात कहना छह रहा हूँ-
कविता पढने के बाद क्या लिखूं...कुछ सूझ नहीं रहा है...बस सोच में पढ़ गया हूँ...यह सचमच बहुत ही सरल शब्दों में हिंदी की मार्मिक कहानी बयाँ करती कविता! जारी रहें.

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया!!

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

जय हिन्दी!

संजय तिवारी ने कहा…

आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.

आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

seema gupta ने कहा…

हॉ मै हिंदी हू ,हिंदी हू ,हिंदी हू ,
भारत माता की बिंदी हु.
हिंदी के दर्द को आवाज देती ये पंक्तियाँ बहुत कुछ सोचने को मजबुर करती हैं.....इस भावनात्मक प्रस्तुती के लिए आभार...

regards

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक रचना है हिन्दी दिवस पर बहुत बहुत शौभकामनाये

mehek ने कहा…

bahut hi achhi rachna,hindi ko chindhi samjnewale logon ki soch badalni hogi.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हिंदी की त्रासदी पर बहुत शशक्त रचना...
नीरज

संगीता पुरी ने कहा…

मार्मिक पर सटीक .. ब्‍लाग जगत में कल से ही हिन्‍दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्‍छा लग रहा है .. हिन्‍दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही प्रभावी ढंग से अपनी बात कहती हुई यह रचना......हाँ आज हिन्दी का दर्द यही है!

ओम आर्य ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सदा ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति,
यह निरंतरता सदैव बनी रहे । बधाई ।।

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

बढिया लिखा है |

आज हिंदी को देख कर दर्द होता है : http://raksingh.blogspot.com/2009/07/blog-post_14.html

amiteshwar ने कहा…

सरल शब्दों में हिंदी की मार्मिक कहानी बयाँ करती कविता!इस भावनात्मक प्रस्तुती के लिए आभार...
कहने को तो यह आज विश्वभाषा बन रही है लेकिन वह जिस तरह की हिन्दी है वह एक जनभाषा हो सकती है पर क्या वह पारिभाषिक शब्दावली के लिहाज से उचित होगा?
अगर आप या आपका कोई मित्र इस पर प्रकाश डालें या कोई सुझाव दें तो मुझे खुशी होगी|

राष्ट्रीय भाषा का विचार , 'अक्षर-राग’ को भी पढ़े www.bhartiyahindi.blogspot पर और सुझाव दें.

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने! हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!

लता 'हया' ने कहा…

shukria,

har hindi premi ki yahi soch hai lekin.......

HINDI HAIN HUM VATAN HAI HINDUSTAAN HAMAARA.